राधिका
निशा के तम में, ज्यों बजेगी तुम्हारी मुरली की धार;
मैं प्रकृति बन आउंगी, करने निज ईश्वर का साक्षात्कार |
जब पूर्ण शशि की प्रतिच्छाया होगी यमुना पर,
तब संजीवन होगी तुम्हारी प्रकृति, हे बंसीधर!
यदि ना भी गूंजा बंसी से, ब्रह्माण्ड का अनहद नाद,
झूमेगी
यह प्रकृति फिर भी, करेगी ईश्वर को याद |
बहेगी यह प्रकृति तम के जलधि में,
तुम बन लहर अपनी भुजाओ में भर लेना;
पूर्णिमा की रात पगस्थिर रहूंगी यहीं,
तुम बन शशिधर निज शक्ति को धर लेना |
श्वास भरकर भेज रही हूँ समीर तुम्हे, श्याम,
युद्ध के हुंकारो में, यह भर देगा मेरा नाम |
उस रणभूमि से किन्तु, भेजना तुम्हारी चरण-धूलि,
ईश्वर को मिलने तृषित यहॉं, बैठी राधिका सब भूली |
जब पूर्ण हो जाए वह धर्मयुद्ध,
केवल एक बार ब्रिजभूमि पर आना;
युद्ध में मिले ज्वलित घावों को,
एक बार निहार लू, फिर चले जाना |
(कृष्णायन - भार्गव पटेल)